महादेवी वर्मा आधुनिक काल के सर्वश्रेष्ठ कवित्रियों में से एक थी उन्होंने अपने कविता के माध्यम से समाज को एक नई दिशा देने का हर संभव प्रयास किया था। छायावाद के चार स्तंभों में से एक उन्हें भी मान जाता है। उन्हें आधुनिक काल का मीरा भी कहा जाता है। महादेवी वर्मा ने अपने कविता में हिंदी खड़ी भाषा का प्रयोग किया है ताकि हम लोग को भी आसानी से उनकी कविता समझ में आ सके। हिंदी भाषा के बारे में उन्होंने अपने विचार भी व्यक्त किए थे उन्होंने कहा था हिंदी भाषा हमारी अस्मिता के साथ जुड़ी हुई है। इसलिए हमें हिंदी भाषा का प्रचार और प्रसार करना चाहिए ऐसे में अगर आप भी महादेवी वर्मा के जीवन परिचय के बारे में जानना चाहते हैं तो आज के आर्टिकल में हम आपको Mahadevi Verma ka jivan Parichay के बारे में विस्तार पूर्वक जानकारी उपलब्ध करवाएंगे इसलिए अनुरोध है कि आर्टिकल पर बने रहिएगा-
महादेवी वर्मा का प्रारंभिक जीवन
महादेवी वर्मा का जन्म 24 मार्च सन् 1907 ई० में उत्तर प्रदेश के प्रशिद्ध नगर फर्रुख़ाबाद के एक संपन्न कायस्थ परिवार में हुआ था उनके पिता का नाम गोविन्द सहाय वर्मा था, जो इन्दौर के एक कॉलेज में अध्यापक थे और माता जी का नाम श्रीमती हेमारानी देवी था, साधारण कवित्री थी और साथ में धार्मिक विचारों की महिला थे हम आपको बता दें कि Mahadevi Verma की एक छोटी बहन और दो भाई थे उनकी बहन का श्यामा देवी, और जगमोहन वर्मा एवं महमोहन वर्मा था।
महादेवी वर्मा का नाम महादेवी कैसे पड़ा?
हम आपको बता दे की Mahadevi Verma के खानदान में 200 वर्षों यानी सात पीढ़ी के बाद कन्या का जन्म हुआ था जिसके बाद उनके दादाजी ने कहा कि उनके घर में देवी अवरीत हुई हैं जिसके बाद ही उनका नाम महादेवी रखा गया।
महादेवी वर्मा का विवाह (marriage)
उन दिनों बाल विवाह की प्रथा थी जिसके कारण 1916 में 9 वर्ष की उम्र में उनका विवाह डॉक्टर स्वरूप नारायण वर्मा के साथ कर दिया गया हम आपको बता दें कि उनके पति का दंपति जीवन में कोई रुचि नहीं था।
महादेवी वर्मा की शिक्षा (education)
श्रीमती महादेवी वर्मा जी की प्रारम्भिक शिक्षा इन्दौर के मिशन स्कूल पूरा किया जहां पर उन्होंने संस्कृत अंग्रेजी चित्रकला जैसे विषयों में अच्छी खासी जानकारी हासिल की हम आपको बता दे की Mahadevi Verma आगे भी शिक्षा ग्रहण करना चाहती थी लेकिन उनकी शादी काफी कम उम्र में हो गई और ससुराल में उनके ससुर के विरोध के कारण वह अपनी पढ़ाई पूरी नहीं कर पाई लेकिन जब उनके ससुर का देहांत हो गया तो दोबारा से उन्होंने 1920 ई० में मिडिल परीक्षा प्रथम क्लास से पास किया है जिसके बाद उन्होंने बाद में बी. ए. की परीक्षा प्रयाग विश्वविद्यालय से प्रथम श्रेणी के साथ पास कर लिया और फिर 1932 में की। सन् 1932 ई. में प्रयाग विश्वविद्यालय में संस्कृत भाषा एवं साहित्य में एम. ए. परीक्षा उन्होंने पास किया और शिक्षिका बन गई।
महादेवी वर्मा के द्वारा किए गए महत्वपूर्ण कार्य कौन से हैं
महादेवी वर्मा ने 1935 में महादेवी विद्यापीठ स्कूल की स्थापना की और इस स्कूल की प्रधानाचार्य महादेवी वर्मा थी। इसके बाद उन्होंने अपने आज तक प्रयास और परिश्रम से इस विद्यापीठ को आगे तक पहुंचा इसके बाद प्रयाग महिला विद्यापीठ की उपकुलपति के पद पर आसीन हुई हम आपको बता दे की उ हम आपको बता दें कि उन्होंने साहित्यकार संसद स्थापना किया इसके बाद पं. इलाचन्द्र जोशी के सहयोग से साहित्यकार का पद उन्होंने ग्रहण किया। महादेवी वर्मा जी ने लेखन के साथ-साथ अनेक पत्र-पत्रिकाओं संपादन में किया था उन्होंने महिलाओं के लिए 1932 में चांद पत्रिका का संपादन किया है जहां पर महिलाओं के अधिकार के बारे में अपनी कलम से कई प्रकार की लेख लिखा करती थी ताकि महिलाएं जागृत हो सके।
श्रीमती महादेवी वर्मा जी कुछ वर्षों तक उत्तर प्रदेश विधानसभा की मनोनीत सदस्य भी रहीं। श्रीमती महादेवी वर्मा जी आधुनिक साहित्य का मीरा भी कहा जाता है।
महादेवी वर्मा को आधुनिक युग का मीरा क्यों कहा जाता है?
जैसा कि आप लोगों को मालूम है कि मीरा भगवान श्री कृष्ण की दीवानी थी और उनके भक्ति में उन्होंने अपना पूरा जीवन समर्पित किया है जिस प्रकार मीरा भगवान श्री कृष्ण से मिलने के लिए बिरहा की घटना झेल रही थी ठीक उसी प्रकार Mahadevi Verma भी अपने जीवन में कई प्रकार की बिरहा का सामना कर रही थी यही वजह है कि उन्हें आधुनिक युग का मीरा कहा जाता है क्योंकि उनके काव्यशास्त्र में बिरहा वेदना जैसे चीजों की झलक आपको साफ तौर पर दिखाई पड़ेगी यदि आप महादेवी वर्मा के कविताओं को पढ़ेंगे तो आपको समझ में आएगा उनकी कविता में कितना दर्द और वेदना है।
महादेवी वर्मा के साहित्य की भाषा क्या थी
महादेवी वर्मा ने अपने सभी काव्यशास्त्र में खड़ी हिंदी बोली का इस्तेमाल किया है | हालांकि हम आपको बता दें कि उन्होंने और भी कई भाषाओं का इस्तेमाल किया है लेकिन उनके काव्य में आपको खड़ी हिंदी बोली की झलक साफ तौर पर दिखाई पड़ेगी।
महादेवी वर्मा की प्रमुख रचनाएँ
महादेवी वर्मा ने निम्नलिखित प्रकार के रचनाओं को लिखा था जिसका पूरा विवरण हम आपको नीचे प्रस्तुत कर रहे हैं लिए चलिए जानते हैं-
काव्य संग्रहः-
- ‘निहार’,
- ‘रश्मि’, ‘
- नीरजा’,
- ‘सान्ध्यगीत’,
- ‘दीपशिखा’,
- ‘सप्तपर्णी’ व ‘हिमालय’
गद्य साहित्यः-
- अतीत के चलचित्र (1961, रेखाचित्र)
- स्मृति की रेखाएं (1943, रेखाचित्र)
- पाठ के साथी (1956)
- मेरा परिवार (1972)
- संस्कारन (1943)
- संभासन (1949)
- श्रींखला के करिये (1972)
- विवेचामनक गद्य (1972)
- स्कंधा (1956)
- हिमालय (1973)
निबंधः–
- श्रृखला की कड़ियाँ’,
- ‘विवेचनात्मक गद्य’,
- ‘साहित्यकार की आस्था’ तथा अन्य निबंध इत्यादि
- संपादनः- चाँद पत्रिका।
महादेवी वर्मा के महान विचार
- जीवन के सम्बन्ध में निरन्तर जिज्ञासा मेरे स्वभाव का अंग बन गई है। ”
- “आज हिन्दु – स्त्री भी शव के समान निःस्पंद है।”
- “अर्थ ही इस युग का देवता है। ”
- “मैं किसी कर्मकाण्ड में विश्वास नहीं करती… मैं मुक्ति को नहीं, इस धूल को अधिक चाहती हूँ।”
- “अपने विषय में कुछ कहना पड़े : बहुत कठिन हो जाता है क्योंकि अपने दोष देखना आपको अप्रिय लगता है और उनको अनदेखा करना औरों को।”
- “कष्ट और विपत्ति मनुष्य को शिक्षा देने वाले श्रेष्ठ गुण हैं, जो साहस के साथ उनका सम्मान करते है ।”
- “कवि कहेगा ही क्या, यदि उसकी इकाई बनकर अनेकता नहीं पा सकी और श्रोता सुनेंगे ही क्या, यदि उन सबकी विभिन्नताएँ कवि में एक नहीं हो सकी।”
- “मेरे संकल्प के विरूद्ध बोलना उसे और अधिक दृढ़ कर देना है।”
- “पति ने उनका इहलोक बिगाड़ दिया है, पर अब उसके अतिरिक्त किसी और की कामना करके वे परलोग नहीं बिगाड़ना चाहती।”
- “गृहिणी का कर्त्तव्य कम महत्वपूर्ण नहीं है, यदि स्वेच्छा से स्वीकृत है।”
- “क्या हमारा जीवन सबका संकट सहने के लिए है?”
- “प्रत्येक गृह स्वामी अपने गृह का राजा और उसकी पत्नी रानी है कोई गुप्तचर, चाहे देश के राजा का ही क्यों न हो, यदि उसके निजी वार्ता का सार्वजनिक घटना के रूप मे प्रचारित कर दे, तो उसे गुप्तचर का अधिकार दुष्टाचरण ही कहा जाएगा।”
- “विज्ञान एक क्रियात्मक प्रयोग है।”
- “वे मुस्कुराते फूल, नही जिनको आता है मुरझाना, वे तोरो के दीज नही जिनको भाता है बुझ जाना।”
- “प्रतिवाद के उपरांत तो मत परिवर्तन सहज है, पर मौन मे इसकी कोई संभावना शेष नहीं रहती।”
- “मैंने हँसी में कहा – ‘तुम स्वर्ग में कैसे रह सकोगे बाबा! वहाँ तो न कोई तुम्हारे कूट पद और उलटवासियाँ समझेगा और न आल्हा-ऊदल की कथा सुनेगा । स्वर्ग के गन्थर्व और अप्सराओ मे तुम कुछ न जँचोगे।”
- “पैताने की ओर यंत्र से रखी हुई काठ और निवाड़ से बनी खटपटी कह रही थी कि जूते के अछूतेपन और खड़ाऊँ की ग्रामीणता के बीच से मध्यमार्ग निकालने के लिए ही स्वामी ने उसे स्वीकार किया है।”
- “प्रत्येक विज्ञान मे क्रियात्मक कला का कुछ अंश अवश्य होता है ।”
- “कला का सत्य जीवन की परिधि में, सौंदर्य के माध्यम द्वारा व्यक्त अखण्ड सत्य है।”
- “व्यक्ति समय के सामने कितना विवश है समय को स्वीकृति देने के लिए भी शरीर को कितना मूल्य देना पड़ता है।”
- कोई भी कला सांसारिक और विशेषतः व्यावसायिक बुद्धि को पनपने ही नहीं दे सकती और बिना इस बुद्धि को पनपने ही नहीं दे सकती और बिना इस बुद्धि के मनुष्य अपने आपको हानि पहुँचा सकता है, दूसरो को नहीं।”
- “एक निर्दोष के प्राण बचानेवाला, असत्य उसकी अहिंसा का कारण बनने वाले सत्य से श्रेष्ठ होता है।”
- “कवि अपनी श्रोता – मण्डली में किन गुणों को अनिवार्य समझता है, यह प्रश्न आज नहीं उठता पर अर्थ की किस सीमा पर वह अपने सिद्धांतों का बीज फेंककर नाच उठेगा, इसका उत्तर सब जानते हैं।”
महादेवी वर्मा को मिलने वाले पुरस्कार
Mahadevi Verma को कई प्रकार के पुरस्कारों से नवाजा गया है जिसका पूरा विवरण हम आपको नीचे दे रहे हैं-
- महादेवी वर्मा को में मंगलाप्रसाद पारितोषिक भारत भारती 1943 में मिला
- महादेवी वर्मा को में उत्तर प्रदेश विधान परिषद का सदस्य 1952 में मनोनीत किया गया
- 1 भारत सरकार ने साहित्य की सेवा के लिए इन्हें पद्म भूषण 1956
- महादेवी वर्मा को मरणोपरांत के बाद पद्म विभूषण पुरस्कार 1988
- महादेवी वर्मा को 1969 में विक्रम विश्वविद्यालय, 1977 में कुमाऊं विश्वविद्यालय, नैनीताल, 1980 में दिल्ली विश्वविद्यालय तथा 1984 में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी ने इनको डी.लिट (डॉक्टर ऑफ लेटर्स) की उपाधि से नवाजा गया था
- महादेवी जी को नीरजा के लिए सक्सेरिया पुरस्कार 1943
- स्मृति की रेखाएं के लिए द्विवेदी पदक 1942
- यामा साहित्य के लिए उन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार दिया गया था 1982 में
महादेवी वर्मा के बारे में रोचक जानकारी
- महादेवी वर्मा का विवाह बचपन में हुआ था लेकिन उन्होंने पूरा जीवन अविवाहित स्त्री के तौर पर गुजारा था
- महादेवी वर्मा के रुचि साहित्य के साथ संगीत और चित्रकला में भी
- महादेवी वर्मा जानवरों से बहुत ज्यादा प्यार करती थी
- महादेवी वर्मा के पिताजी मांस मछली खाते थे और उनकी माता शुद्ध शाकाहारी थे
- कक्षा आठवीं में उन्होंने पूरे प्रांत में पहला स्थान हासिल किया था
- महादेवी वर्मा इलाहाबाद महिला विद्यापीठ की कुलपति और प्रधानाचार्य रह चुके हैं
- भारतीय साहित्य अकादमी की सदस्यता ग्रहण करने वाली पहली महिला थी जिन्होंने 1971 में सदस्यता ग्रहण की।
- सुभद्रा कुमारी चौहान और महादेवी वर्मा एक साथ शांतिनिकेतन में रहा करते थे |
- महादेवी वर्मा निराला जी को अपना भाई मानती थी जिसके कारण से राखी में उन्हें राखी जरूर बांधते थे
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महादेवी वर्मा की मृत्य
हम आपको बता दे कि उन्होंने अपना अधिकतर समय इलाहाबाद में गुजरा था और यहीं पर उन्होंने अपने अंतिम सांस ली थी 11 सितंबर 1987 में रात्रि 9:30 बजे उन्होंने अंतिम सांस ली आज भले ही या महान कवित्री हमारे बीच नहीं है लेकिन उसकी रचनाएं हमेशा हमारे बीच रहेंगे और साथ में समाज को एक नई दिशा देने में अहम भूमिका निभाएंगे।