सूरदास की गिनती भक्ति काल के सर्वश्रेष्ठ कवियों में की जाती है उन्होंने अपने काव्य के माध्यम से श्री कृष्ण भगवान के सभी बाल अवस्था का सुंदर विवरण किया है अगर आप सूरदास के द्वारा लिखे गए काव्य शास्त्र को पढ़ लेते हैं तो आप भगवान श्री कृष्ण को अच्छी तरह से जान जाएंगे कि उन्होंने अपने काव्य में भगवान श्री कृष्ण के बचपन के सभी चीजों को काफी मनमोहक तरीके से चित्रित किया है और अगर आप इसे पढ़ते हैं तो मानो आप पर लगेगा कि आप भगवान श्री कृष्ण के बचपन को बहुत ही करीब से देख रहे हैं इन्हें भगवान श्री कृष्ण का सबसे बड़ा भक्त कहा जाता है इन्होंने अपना पूरा जीवन भगवान श्री कृष्ण की भक्ति में समर्पित कर दिया था | ऐसे में अगर आप सूरदास का जीवन परिचय के बारे में जानना चाहते हैं तो आज के आर्टिकल में हम आपको सूरदास का जीवन परिचय संबंधित पूरी जानकारी आपके साथ साझा करेंगे इसलिए आप आर्टिकल पर बने रहे हैं चलिए जानते हैं-
सूरदास का प्रारंभिक जीवन
सूरदास का जन्म क्या हुआ था इसके बारे में कई प्रकार के मत है कुछ इतिहासकारों का कहना है कि इनका जन्म 1478 ई. में सीही नामक ग्राम में हुआ था, लेकिन दूसरी तरफ कुछ इतिहासकार मानते हैं कि उनकी जन्मस्थली मथुरा आगरा मार्ग पर स्थित रुनकता नामक ग्राम में हुआ था, सूरदास का जन्म निर्धन सारस्वत ब्राह्मण पं0 रामदास क्या हुआ था और उनके पिता गायक थे सूरदास के माता का नाम जमुना दास था था। सूरदास के पिता गायक थे। सूरदास के माता का जमुना दास था।
हम आपको बता दे की बचपन कल से उनकी रुचि कृष्ण भक्ति में थी कृष्ण भक्त होने के कारण वह अपने आप को मदन मोहन नाम भी कहा करते थे हम आपको बता दे की सूरदास ने अपने कई दोहा में मदन मोहन के रूप में अपने आप को परिभाषित किया इनके बारे में कहा जाता है की नदी के किनारे बैठकर पद लिखा करते थे और साथ में उनके गायन भी हम आपको बता दे कि उन्होंने कृष्ण के बारे में जिस प्रकार का विवरण अपने काव्यशास्त्र माध्यम से दिया है शायरी कोई कभी इस प्रकार का विवरण श्री कृष्ण के बारे में दे पाएगा।
सूरदास की शिक्षा
हम आपको बता दे की सूरदास ने महाप्रभु बल्लभाचार्य के माध्यम से अपनी शिक्षा प्राप्त की थी वही उनके गुरु थे उन्होंने अपने गुरु के द्वारा भगवान श्री कृष्ण के बारे में और भी ज्यादा जानकारी हासिल की | हम आपको बता दे कि उनके गुरु के पुत्र बिट्ठलनाथ ने ‘अष्टछाप’ नाम से कृष्णभक्त कवियों का एक संगठन बनाया था जिसमें उनकी गिनती हिसाब से कवियों में होती थी हालांकि उनकी मृत्यु 1583 में परसौली नामक ग्राम में हुआ था।
सूरदास क्या जन्म से अंधे थे?
हालांकि हम आपको बता दे की सूरदास जन्म से अंधे थे इसके बारे में कई प्रकार के अलग-अलग विचारधारा लोगों के द्वारा व्यक्त की गई है कुछ लोगों का मानना है कि सूरदास अंधे नहीं थे बल्कि उन्होंने अपने आप को अंधा घोषित किया था क्योंकि इसके पीछे की वजह है कि कोई भी अंधा व्यक्ति व्यक्ति श्री कृष्ण के उन सभी बाल लीला और गोपियों के संग जिन्होंने जो रासलीला रचाई है उसका जिस प्रकार का सुंदर चित्रण उन्होंने अपने काव्यशास्त्र में किया है ऐसा कर पाना किसी भी अंधे व्यक्ति के लिए संभव नहीं है।
सूरदास के अंधे होने की कहानी
सूरदास का जीवन परिचय की कहानी कुछ ऐसा से शुरू होती है हम आपको बता दें कि सूरदास का नाम मदन मोहन था और अपने जवानी के दिनों में वहां काफी सुंदर और तेज बुद्धि के नवयुग थे एक दिन नदी किनारे जाकर बैठ जाते हैं और कुछ लिखना शुरू करते हैं उसे दौरान एक लड़की को वह गंगा किनारे कपड़े धोते देख लेते हैं तो काफी सुंदर आती है वह उनकी सुंदरता की तरफ आकर्षित हो जाते हैं और उनका पूरा ध्यान लड़की की तरह रहता है।
मदन मोहन ) एक बहुत ही सुन्दर और तेज बुद्धि के नवयुवक थे वह हर दिन नदी किनारे जाकर बैठ जाता और गीत लिखता एक दिन एक ऐसा वाक्य हुआ जिससे उसका मन को मोह लिया। जिसके कारण उनके काम में बाधा उत्पन्न होती है एक दिन लड़की उनके पास आकर बोलता है कि आप मदन मोहन है और कविता लिखने का काम करते हैं इस पर सूरदास ने कहा कि आप बहुत ही सुंदर हैं तब लड़की ने कहा कि क्यों आपको क्या काम है हम आपको बता दे कि इसके बाद लगातार सूरदास उसे लड़की को देखा करते थे कई दिनों तक चला। और सुंदर युवती का चेहरा और उनके सामने से हटा ही नहीं था एक दिन की बात है की लड़की गंगा किनारे आना बंद कर देती है इसके बाद सूरदास मंदिर में जाकर बैठते हैं तभी वहां पर एक शादीशुदा स्त्री आती है और मदन मोहन उनके पीछे-पीछे चल जाते हैं जब उसके घर पहुंचते हैं तो उसका पति दरवाजा खुलता है और पूरे आदर्श संस्कार के साथ उन्हें घर में प्रवेश करवाता है इसके बाद मदन मोहन एकnजलती हुई सलाये तथा उसे अपनी आंख में डाल दी। इस तरह मदन मोहन बने महान कवि सूरदास। उन्होंने कहा कि उनकी आंखों का ही दोस्त है कि वह किसी सुंदर स्त्री को देखकर बहक जाता है और अपने काम पर उसका ध्यान नहीं रहता है तभी से आनंद मोहन सूरदास बन गए।
सूरदास जी का विवाह
सूरदास के विवाह के संबंध में कई लोगों का मत है कि उनका विवाह हुआ था और कुछ लोग मानते हैं कि नहीं हुआ था हालांकि हम आपको बता दें कि सूरदास का विवाह रत्नावली नाम की सुंदर महिला से हुआ था लेकिन इसके विषय में भी काफी मतभेद है ऐसे में हम कर सकते हैं कि लोगों की अपनी राय है और उनके मुताबिक ही सूरदास के विवाह के संबंध में जानकारी उपलब्ध करवाई गई है।
सूरदास की प्रमुख रचनाएं कौन-कौन सी हैं?
सूरदास के द्वारा निम्नलिखित प्रकार की रचनाएं रचित की गई थी जिनका पूरा विवरण हम आपको नीचे दे रहे हैं आईए जानते हैं-
सुरसागर (Sursagar) :-
सूरदास के द्वारा सूरसागर एक प्रमुख रचना है जिसके अंदर एक लाख से अधिक पद और छंद संग्रहित थे। लेकिन आज के समय सूरसागर रचना में केवल 70000 से 8000 पद सुरक्षित बचे हैं हम आपको बता दें कि सूरसागर में कुल मिलाकर 12 अध्याय हैं सूरसागर को ब्रजभाषा में लिखा गया है परन्तु इस ग्रन्थ की प्रतिलिपियाँ राजस्थान के नाथद्वारा के सरस्वती भण्डार में सुरक्षित रखी गयी हैं।
सूरसारावली (Sursarawali) :-
सूरसारावली सूरदास के द्वारा मथुरा में खेले जाने वाले विश्व प्रसिद्ध लठमार होली के गीतों का संग्रह रूप है इसमें आपको होली के बारे में पूरी जानकारी मिल जाएगी मथुरा में लठमार होली भगवान श्री कृष्ण के द्वारा कैसे खेला जाता था सूरसारावली में कुल 1107 छंद है। ऐसा माना जाता है की सूरदास जी ने सूरसारावली (Sursarawali) की रचना 67 वर्ष की उम्र में क थी।
साहित्य-लहरी (Sahitya-Lahri) :-
सूरदास का द्वारा लिखी गई साहित्य लहरी हिंदी साहित्य के श्रृंगार रस पर आधारित एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है इसमें आपको 118 लघु रचना सहित पद मिल जाएंगे। जिसमें सूरदास जी ने अपने गुरु वल्ल्भाचर्य और कृष्ण भक्ति का वर्णन किया है। साहित्य लहरी में सूरदास जी के द्वारा कई प्रकार के दोहे भी लिखे गए हैं।
नल-दमयन्ती (Nal-Damyanti) :- सूरदास जी इस रचना में महाभारत के नल और दमयंती के कहानी के बारे में जानकारी दी गई है हम आपको बता दें कि इस रचना में श्री कृष्णा और युधिष्ठिर के उस वार्तालाप का भी विवरण है अपना सब कुछ जुआ में हार जाते हैं।
सूरदास जी के प्रसिद्ध दोहे
“चरण कमल बंदो हरि राई। जाकी कृपा पंगु लांघें अंधे को सब कुछ दरसाई। बहिरो सुनै मूक पुनि बोले रंक चले छत्र धराई। सूरदास स्वामी करुणामय बार-बार बंदौ तेहि पाई।।”
भावार्थ – सूरदास कहते हैं कि श्री कृष्ण की कृपा होने पर अपंग व्यक्ति भी आराम से पहाड़ की चढ़ाई कर सकता है अंधे भी संसार को देखने में समर्थ हो सकते हैं भाइयों को भी सुनाई देगा गूंगा व्यक्ति बोलने लगेगा साथ में गरीब व्यक्ति गरीब से मुक्त हो सकता है ऐसे में से किस चरणों की वंदना कोई क्यों नहीं करेगा।
“जसोदा हरि पालनै झुलावै। हलरावै दुलरावै मल्हावै जोई सोई कछु गावै।।”
भावार्थ – यशोदा जी भगवान श्री कृष्ण को पालने में झुलाते हुए बहुत खुश दिख रही है। कभी वह लल्ला को झूला झूलाती है और कभी उन्हें प्यार से सहलाती है। कभी गाते हुए कहती है कि निंद्रा तू मेरे लाल के पास आ जा। तू आकर इसे क्यों नहीं सुलाती है।
“सुनहु कान्ह बलभद्र चबाई, जनमत ही कौ धूत। सूर स्याम मौहिं गोधन की सौं, हौं माता तो पूत।।”
भावार्थ – ऊपर दोहे का असली अर्थ यह है कि श्री कृष्ण अपनी माता यशोदा को शिकायत करते हुए कहते हैं – कि उनके बड़े भाई बलराम उन्हें यह कहकर चिढ़ाते हैं, कि आप मुझे कहीं और से लाए हैं। वह यह भी कहते हैं कि वह बलराम के साथ खेलने नहीं जाना चाहते। ऐसे में श्री कृष्ण बार-बार माता यशोदा से पूछते है कि बताओ माता मेरे असली माता पिता कौन है। माता यशोदा गोरी हैं परंतु मैं काला कैसे हूं। श्रीकृष्ण के इन सवालों को सुनकर ग्वाले सुनकर मुस्कुराते हैं।
तुम मेरी रखो लाज हरि
तुम जानत सब अंतर्यामी
करनी कच्छू न करि
अवगुण मोसे बिचदत नहीं
पल छिं घाडी घाडी
सब प्रपंच की पॉट बंधी करि
अपने शीश धारी
दारा सुत धन मोह लिए हैं
सूद कली सब बिच्छड़ी
सुर पतित को बेगी उबरो
अब मोरी नाव भारी
अर्थ: हे हरि! मेरी शुचिता बनाए रखो आप सब कुछ जानते हैं काम कुछ भी तय नहीं करता मैं अपने अवगुणों को दूर करने में सक्षम नहीं हूं, समय-समय पर समय बीतता जाता है पत्नी, बेटे और दौलत ने मुझे बहकाया है, मेरी याद खो गई है।सूरदास जी कहते हैं कृपया मुझे जल्द ही राहत दें अब मेरा जीवन (यहाँ नाव के रूप में व्यक्त किया गया है) फील हो गया है।
सूरदास के अनमोल वचन
1) जीवन के अंतिम क्षण में ईश्वर की आराधना करके इस संसार से छुटकारा पाने का प्रयास करना चाहिए।
2) अवगुण को मत देखिए। एक लोहे को मूर्ति के रूप में पूजा घर में रखा जाता है और दूसरे लोहे को जानवरों को मारने के हथियार के रूप में बूचड़खाने में रखा जाता है। पारस पवित्र और अपवित्र – पत्थर इन दो प्रकार के लोहे के बीच कोई भेद नहीं करता है, यह उन्हें स्पर्श से असली सोना बनाता है।
3) हे मन! तू इस माया रुपी संसार में यहां वहां क्यों भटकता है, तू केवल वृंदावन में रहकर अपने आराध्य श्री कृष्ण की स्तुति कर। केवल ब्रजभूमि में रहकर ब्रज वासियों के जूठे बर्तनों से जो कुछ भी अन्न प्राप्त हो उसे ग्रहण करके संतोष कर तथा श्री कृष्ण की आराधना करके अपना जीवन सार्थक कर।
4) राम नाम एक ऐसा अनोखा खजाना है जिसे हर कोई प्राप्त कर सकता है। धन अथवा संपत्ति को एक बार खर्च करने पर वह कम हो जाता है, लेकिन राम नाम एक ऐसा अनमोल रत्न है जिसे कितने भी बार पुकारा जाए उसका महत्व कभी भी नहीं घटता।
5) हे श्री कृष्ण इस पाप से भरे दुनिया से मुझे मुक्त कीजिए, मेरे सिर पर पाप की ढेरों गठरियां पड़ी है जो मुझे मोह माया से बाहर नहीं निकलने दे रही हैं। हे प्रभु मेरे मन को क्रोध और काम रूपी हवाएं बहुत सताती हैं, कृपया मुझ पर दया करिए।
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सूरदास की मृत्यु
सूरदास की मृत्यु कब हुई (Surdas ki Mrityu kab Hui) –
मां भारती का यह पुत्र 1583 ईस्वी में गोवर्धन के पास स्थित पारसौली गांव में उन्होंने अपना शरीर त्याग दिया लेकिन हम आपको बता दे की सूरदास ने भक्ति काल में अपनी रचनाओं के माध्यम से उसे जमाने में भक्ति का प्रचार और प्रसार किया हम आपको बता दें कि हिंदी गद्य और पद्य के क्षेत्र में भक्ति और श्रृंगार रस का बेजोड़ मेल प्रस्तुत किया है। हिंदी साहित्य में उनकी रचनाएं एक अहम स्थान रखती है और ब्रज भाषा को साहित्य दृष्टि से उपयोगी भाषा बनाने का काम महाकवि सूरदास ने किया था।
हमें उम्मीद है सूरदास का जीवन परिचय पे लिखा ये लेख आप लोगो को जरुर पसंद आया होगा. इसी तरह और शिक्षाप्रद लेख पढ़ सकते हैं और हमें उम्मीद है उससे भी आप लोगों को बहुत कुछ सीखने को मिल सकता है। सूरदास का जीवन परिचय के बारे में इस लेख में जो भी लिखा गया है इसको हमने टॉप सर्च इंजन के विश्वशनिय साइट्स से लिया गया है। अगर सूरदास का जीवन परिचय के बारे में और कुछ ज्यादा बताना चाहते हैं तो कमेंट कर सकते हैं और उसे ऐड करने की कोसिस करेंगे।